लवणों का ज्ञान (प्राचीन भारत में रसायन का विकास)

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लवणों का ज्ञान

चरक के अनुसार लवण वर्ग के अंतर्गत निम्न पदार्थों को रखा गया है:

सैन्धव - सौवर्चल - काल - विड - पाक्यानूप - कूप्य - वालुकैल - मौलक - सामुद्र - रौमकौदिभ - दौवरपाटेयक - पांशुजान्येवंप्रकाराणि चान्यानि लवणवर्गपरिसंख्यातानि।

  • सैन्धव (Rock Salt)
  • सौवर्चल (Sanchal Salt)
  • काल (काला नमक) (Black Salt)
  • बिड (Vida)
  • पाक्य (Crystallised Salt)
  • आनूप (Salts from swamps)
  • कूप्य (Salt from well water) कुँए के जल से प्राप्त लवण
  • वलुकैल (Salt from sandy deposits)
  • मौलक (Crystallised Mixed Salt)
  • सामुद्र (Salt from sea Water)
  • रोमक (Salt from Sambhar lake)
  • औदभिद (Salt from efflorescence)
  • औषर (Salt from alkaline land)
  • पाटेयक (Poitou Salt)
  • पांशुज (Salt from ashes)


येडपीह भूमेरत्यूषरा देशास्तेष्वोषधि

वीरुद्वनस्पतिवानस्पत्या न जायन्तेडल्प - तेजसो दा भवन्ति, लवणोपहतत्वात्।

आजकल की रासायनिक भाषा में ये लवण सोडियम और पोटेशियम के क्लोराइडों, नाइट्रेटों, सल्फेटों और कार्बोनेटों के मिश्रण हैं। इसी प्रकार काले नमक और मौलक में संभवतः कुछ सल्फाइड भी हैं। नमक भोजन और औषधि दोनों में उपयोग होता है। इसमें उष्ण और तीक्ष्ण गुण बताये गए हैं, और यह अन्नद्रव्य अर्थात भोजन को रुचिकर बनाता है। नमक के अधिक प्रयोग से ग्लानि और दुर्बलता उत्पन्न होती है। इसके सेवन से शिथिलता, ग्लानि, मांस और रुधिर के दोष एवं क्लेश सहने के प्रति असहनशीलता आ जाती है।

चरकसंहिताकार इस बात की पुष्टि में बाह लीक, सौराष्ट्र, सिंधुप्रदेश और सौवीर देश के निवासियों का नाम लेते हैं, यहाँ के निवासियों को नमक इतना प्रिय है कि वे दूध के साथ भी नमक का सेवन करते हैं।

चरकसंहिताकार इस बात से भी परिचित हैं कि ऊसर भूमि में नमक का आधिक्य होने के कारण ऐसी भूमि पर औषधियाँ और वनस्पतियाँ या तो उत्पन्न ही नहीं होतीं, और यदि होती भी है, तो उनमे विशेष शक्ति नही होगी अर्थात (अल्प-तेजस् होती हैं)!